रविवार, 30 अप्रैल 2023

चिर - स्मरणीया माँ



माँ!
तुम्हे याद करने के लिए मुझे
किसी विशेष दिन की नहीं अपेक्षा 
स्मृति पटल पर अंकित हो तुम 
जीवन के एक अंग की तरह 


सम्मिलित  हो अविच्छिन्न  रूप से 
मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व में तुम
   महसूस करती  हूँ तुम्हारा प्रभाव सदैव
अपने हर विचार और व्यवहार में


कठिन  परिस्थियों में भी सहज रहकर
 करती हूँ प्रयास जब संघर्ष -रत रहने का
   जाने - अनजाने तुम्हारे ही पद - चिन्होँ  पर 
मैं  भी तो निर्भय चल रही होती हूँ 


किसी का दुख -दर्द  देख - सुन  कर
विचलित  हो उठता  है  जब  मेरा मन 
तुम्हारी सहज करुणा का उद्रेक ही तो
   छलक आता है  आँखों में अश्रु बनकर

क्रूरता और अन्याय के विरुद्ध
दृढ़ता  से मुखरित  होते मेरे स्वर
तुम्हारी ही न्यायप्रियता को
 प्रतिध्वनित करते हैं घनीभूत  होकर.


कुछ शुभ  घटित  होने पर
जब जुड़ जातीं हथेलियां अनायास,
   उस परम पिता के प्रति आभार  में सिर झुका कर 
 तुम्हारा ही तो अनुसरण  करती हूँ मैं,
अविस्मरणीया माँ!





















































































































































 

तीर पर कैसे रुकूँ मैं

 क्षितिज तक लहरा रहा चिर -सजग सागर    संजोये अपनी अतल गहराइयों में    सीप, मुक्ता,हीरकों  के कोष अगणित  दौड़ती आतीं निरंतर बलवती उद्दाम लहरें...