शुक्रवार, 17 मई 2024

याचना


     हे मेरे प्रभु! 

विनती है मेरी तुमसे 

कि मिटा डालो समूल 

मेरे ह्रदय की दरिद्रता को 

उस पर निरंतर प्रहार करके


शक्ति दो मुझे देव 

सुख दुख दोनों को ही 

समान भाव से सहज रहकर 

सहन करने की.


शक्ति दो कि निर्बलों, निर्धनों 

से कभी विमुख न होऊँ 

और न कभी घुटने टेकूँ 

धृष्ट और दम्भी शक्तियों के समक्ष.


 यह भी कि मन मस्तिष्क को  

उठा सकूँ ऊपर 

नित्य प्रति की क्षुद्र बातों से 

और रह सकूँ उनसे अप्रभावित 

 


 शक्ति दो कि अपने प्रेम को 

सेवा में परिणत  कर फलीभूत कर सकूँ 

और कर सकूँ स्वयं को समर्पित तुम्हें 

सम्पूर्ण प्रेम के साथ.



गुरुदेब रबीन्द्रनाथ ठाकुर की एक कविता का हिंदी रूपांतर 

(गीतांजलि 38)

तीर पर कैसे रुकूँ मैं

 क्षितिज तक लहरा रहा चिर -सजग सागर    संजोये अपनी अतल गहराइयों में    सीप, मुक्ता,हीरकों  के कोष अगणित  दौड़ती आतीं निरंतर बलवती उद्दाम लहरें...