उसमें मिलने से पहले
एक अनाम भय से
काँप उठती है नदी
याद करने लगती है उन पर्वत शिखरों को
जहाँ से निकल पड़ी थी कभी
बाल- सुलभ उत्सुकता से
कुछ नया ढूंढने की चाह में
उस लम्बे ,घुमावदार रास्ते
और उसमे मिलने वाले
अनगिनत जंगलों और बस्तियों को
जिन्हें पार कर यहाँ तक पहुंची है
और अब फैली है उसके सामने
दिगंत तक लहराती यह अगाध जलराशि
जिस में प्रवेश करने का अर्थ होगा
सदा,सदा के लिए अदृश्य हो जाना
तो अब क्या करे नदी? कैसे बचाए अपना अस्तित्व?
पीछे तो लौट नहीं सकती
और अन्य कोई मार्ग दिखाई नहीं देता
दूर -दूर तक
प्राण रहते वापस जाना संभव नहीं
और नहीं है कोई अन्य विकल्प भी
समुद्र में प्रवेश करने का जोखिम
उठाना ही पड़ेगा नदी को
शायद तब ही मुक्त हो पायेगी
इस भय और दुविधा के भ्रम जाल से
और स्वयं अनुभव करेगी
एक नए अस्तित्व में प्रोन्नत होने का सुख
जान जाएगी कि सागर में मिल जाना
अस्तित्व विहीन होना नहीं होता
बल्कि उसके साथ एकाकार होकर
स्वयं सागर बन जाना होता है!!
लेबनानी / अमेरिकी कवि खलील जिब्रान की " Fear " शीर्षक कविता का भावानुवाद