सच है कि बहुत अच्छी लगती हैं
वे चमकदार हरी पत्तियाँ
जो पेड़ों का श्रृंगार बन
झूमती रहती हवाओं में
जीवन संगीत की सृष्टि करती हुई
पर क्या देखा है कभी ठहर कर
उन पीले, सूखे पत्तों को भी,
जो अपना जीवन चक्र पूरा कर
बिखरे पड़े होते हैं धरती पर
अंतिम समर्पण में?
यह भी तो सर्व विदित है कि
वे भी हमारी तरह ही विवश हैं, जो
विश्व -रंगमंच पर अपनी भूमिका निभा
नीचे उतर जाते हैं निर्विरोध, चुपचाप--
फिर कभी न लौटने के लिये?
इसलिए यह छोटा सा निवेदन -
कि जब कभी गुज़रना हो किसी ऐसी जगह से
जहाँ बिखरे हों रास्ते में पीले, भूरे पत्ते
तनिक सँभाल कर रखना अपने कदम
ताकि आ न जायें वे पैरों के नीचे.
हाँ, इतना आदर तो देना ही होगा उन्हें
जीवन भर निः स्वार्थ सेवा करते रहे जो
सुलभ करते रहे हमको जीने के सम्बल
फल -फूल, शीतल छाया ही नहीं
साँसों की साँस,अदृश्य प्राण - वायु भी.
छाया चित्र, साभार
विनेश पोसवाल