बुधवार, 15 मार्च 2023

आकाश गंगा

दिन भर  की अनथक यात्रा के बाद,

जब सूर्य का आलोक रथ,

 चला  जाता  है क्षितिज के उस पार 

और धरती पर उतर आती  है निशा सुंदरी,

अपनी रहस्यमयी  श्यामल  छवि  के साथ.



 एक एक कर  टिमटिमाने  लगते  हैं  यत्र -तत्र,

  उज्ज्वल हीरक कणों से असंख्य तारक गण,

   देखते ही देखते जगमगाने लगता  है आकाश,

    रत्न -जड़ित  दर्पण  के सदृश.


    और  तब गहन  अंधकार  को भेदती,

     प्रकट  होती है उस अनंत विस्तार में,

     एक छोर  से दूसरे तक प्रवहमान,

       वह स्वनामधन्या -- आकाशगंगा.


       समाविष्ट  किये अपने अपरिमित आँचल में,

        कोटि -कोटि प्रकाश पुंजों का वैभव,

     अगणित सूर्य, चंद्र, और  नक्षत्रों के संसार को,

        अपने दुर्निवार आकर्षण की परिधि में बाँध.


       बह रही निरंतर, कालदेव की सहगामिनी बन,

       नीले आकाश  के ह्रदयस्थल  को सींचती,

        दैवी सौंदर्य  की अप्रतिम ज्योतिरेखा,

        वह  स्वयंप्रभा -- आकाशगंगा!

       





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