लो फिर आ धमकी वह नन्ही गौरय्या !!
चोंच में दबाये एक छोटा सा तिनका
चुपके से आ बैठी कूलर की छत पर
घोंसला बनाने का करके इरादा
निर्भीक जैसे किसी का नहीं डर
कैसी ना समझ , भोली गौरय्या!
समझाया था मैंने कई बार उसको,
कि सुरक्षित नहीं है यह जगह उसके हित,
उड़ाने की कोशिश भी कई बार की थी,
पर सुनती कहाँ है वह कभी किसी की!
निपट हठीली, मूर्ख है गौरय्या!
क्रूर दिख कर भी चाहा था रोकना
उठा कर फेंक दिए तिनके सब एक बार,
सोचा था अब नहीं आएगी यहाँ कभी,
पर वह तो फिर फिर लौट आती है इधर ही!
छोटी सी, मगर धुन की पक्की गौरय्या!!
पूछ ही बैठी आखिर आज मैं उस से,
"चाहती हो क्यों यहीं पर घर बनाना,
बताया था न तुम्हेँ ठीक नहीं है ये जगह,
खोज क्यों न लेती कोई भला सा ठिकाना?"
पल भर चुप रह फिर चहचहाई गौरय्या!
"मुझको तो यही छत लगती है सुरक्षित,
क्योंकि तुम पर मुझे भरोसा है पक्का,
कि नहीं पहुँचाओगी कभी हानि मेरे घर को,
नहीं करने दोगी किसी और को भी ऐसा ".
सुनकर बात उसकी दिल मेरा भर आया,
थोड़ी सिरफिरी, पर है न प्यारी गौरय्या?
छाया चित्र, साभार
बिश्नोई अभिषेक
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