मंगलवार, 28 मार्च 2023

अविस्मरणीय



 

 उस एक शाम

दोपहर बाद की झपकी

अचानक ही टूटी थी

पड़ोस की छत से आती

घंटियों की आवाज़ से



और देखते देखते

गूँज उठा था सारा वातावरण

तालियों, घंटियों और शंख ध्वनियों के

मधुर  स्वरों से


  सम्मोहित सी मैं भी

घर की छत  पर जा पहुंची

और  अनायास ही शामिल हो गयी

उस अद्भुत, अपूर्व, संगीतोत्सव में


जहाँ चतुर्दिश गूँजती

विविध  स्वरलहरियाँ मानो

बिना शब्दों के भी बहुत कुछ कहने

फूट  पड़ी  थी एकाकर होकर


जन -जन की सेवा में जुटे

उन असंख्य कर्मवीरों के प्रति

स्नेह, सम्मान, और  कृतज्ञता  का यह ज्ञापन

निश्चित ही भावभीना था

और  चिर- स्मरणीय  भी!



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