शनिवार, 25 मार्च 2023

पतझड़ के बाद


 उस सूनी  सड़क  से गुजरते  हुए

  अचानक ही मेरी दृष्टि  पड़ी थी उस पर

 पत्र -पुष्प विहीन निराभरण रूप  उसका

  देखकर  मन हो गया था विचलित


  विगत वैभव  की स्मृतियों में खोया

  वर्तमान दशा पर आँसू  बहाता सा

  मौन  रहकर  भी बहुत कुछ बोलता

  अनाकर्षक, फिर भी अपनी ओर खींचता सा


   ठिठक  गये कदम यह देख अनायास ही

   आखिर वह था मेरा  परिचित वर्षो  का 

    मनोव्यथा उसकी जान लेने का प्रयास किया 

      बँटा सकूँ दर्द यदि हो कुछ अपने वश में


  पास जाकर पूछा, क्यों उदास हो बंधु आज

   कौन सी चिंता  सता  रही है मन को

     तुम तो रहते  थे संतुष्ट और प्रसन्न सदा  ही 

      कारण  क्या है  इस चिंता, उदासी  का 


       भरकर आह लम्बी बोलने लगा  धीरे धीरे वह

        " दुखी  हूँ आज देख  कर दशा अपनी

           कभी था हरा - भरा संसार मेरा सुंदर

           खींच  लाता था पास सब अपने परायों को


          अनगिनत पंछियों का सुखद  रैन बसेरा था

            रहते थे सपरिवार घरौंदे  बनाकर

             धूप से व्याकुल, थके -हारे पथिक  भी तो

              रुक जाते थे  यहाँ शीतल छाँव को पाकर


              और आज यहाँ किसी  भिक्षु  सा उपेक्षित

              अकेला ही झेलता   दुर्भाग्य   के दंश को

             एक दृष्टि भी  कोई डालता नहीं मुझ पर

              फिर बोलो  प्रसन्न रह  सकता मैं क्योंकर?


                 स्नेह से छूकर  उसे आश्वस्त किया मैंने

                 " सच मानो दुख के दिन अब बीत चले भाई

                   देखो वह आती वसंत की सवारी है

                   पतझड़ और शीत  की तो तुम समझो  विदाई


                   सजा देंगी शीघ्र नई  कोंपलें तुम्हारा तन

                 घनी  शीतल छाँव  देख  रुकेंगे पथिक  भी

                  और पंछी तो हैं  साथी सदा से तुम्हारे 

                  गूंजेगा उनका मधुर कलरव यहाँ फिर से


                   प्रतीक्षा की है  तुमने बहुत, थोड़ी  सी और सही

                  लौटेंगी सब खुशियाँ मौसम बदलते ही

                   नहीं विचलित होती  कभी  प्रकृति अपने क्रम से

                   पतझड़  के बाद फिर आता है वसंत ही.


   

  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

तीर पर कैसे रुकूँ मैं

 क्षितिज तक लहरा रहा चिर -सजग सागर    संजोये अपनी अतल गहराइयों में    सीप, मुक्ता,हीरकों  के कोष अगणित  दौड़ती आतीं निरंतर बलवती उद्दाम लहरें...