कविता सी दिखने वाली हर रचना
कविता नहीं होती.
ढेर सारे रस, छंद,और अलंकारों से
सुसज्जित होने पर भी.
उसका कविता कहलाना सुनिश्चित नहीं
यदि किसी के ह्रदय में उतर
वह छू नहीं सकती उसके मर्मस्थल को
भावनुभूति से .
कैसे कहेंगे उसे प्राणवान रचना
यदि उसकी साँसों से नहीं निःसृत होती
प्रेम, करुणा और संवेदना की
अमृतधारा?
कविता तो होती पर्वत प्रदेश से निकली
प्रवहमान निर्झरिणी सी
जो राह में मिलते हर प्राणी को
बाँटती जाती है निर्मल आनंद.
सच है कि बहुत सरल होते हुए भी
वही है एक अच्छी, सच्ची कविता,
जिसमें हर कोई पा सके
अपने ही मनोभावों की अभिव्यक्ति.