शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023

सूर्यास्त के बाद


दिन का वह अंतिम प्रहर

जब परम -प्रतापी सूर्य देव

अपने विशाल साम्राज्य की बागडोर

 चाँद, तारों  को सौंप,चले जाते हैं

 क्षितिज के उस पार

 अपनी अनवरत यात्रा में


  गोधूलि की  वह पवित्र वेला 

  जब आकाश की गहन शांति

   भंग होने लगती है धीरे - धीरे

 विश्राम के लिये नीड़ों की ओर लौटते

 पंछियों की व्याकुल फड़फड़ाहट

  और तुमुल कोलाहल  से.


  दिवस का अवसान होता देख

  अंधकार पसारने  लगता है अपने पाँव

  तभी उसे चुनौती देते जल उठते हैं असंख्य दीप

   हर  सड़क, गली, और चौराहे पर

   ताकि घर लौटता कोई थका -हारा पथिक

    अँधेरे में भटक, अपना रास्ता न खो बैठे!!



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