क्योंकि वह नहीं है मात्र मिटटी, पत्थर
वरन, एक सजीव,सामर्थ्यवान सत्ता
असीम धैर्य , सौन्दर्य और औदार्य की
सजीव प्रतिमा.
जन्मदायिनी माँ जैसी स्नेहशीला
जो पालन करती जन्म से ही, और
फैला देती अपनाआँचल हमारे लिये
खेल कूद कर बड़ा होने को.
युग - युग से बाँटती आई सबको
स्वस्थ, सुखद जीवन जीने के सामान
सिर्फ भोजन, जल, प्राण- वायु ही नहीं,
भौतिक समृद्धि के अनंत उपादान भी.
किन्तु आज उसके अपने ही स्वास्थ्य पर
पड़ती दिख रही ग्रहण की काली छाया
विषैले रसायन और प्लास्टिक का दुष्प्रभाव
करता जा रहा निरंतर क्षरण उसका
उसके संसाधनों का अनियंत्रित दोहन भी
बदल रहा जलवायु के संतुलन को
परिणाम जिसका परिलक्षित हो रहा
दैवी आपदाओं के रूप में.
तब क्या हम कृतघ्न संतानों की तरह
बनते रहेंगे उसके पराभव का कारण
अपने संकीर्ण स्वार्थो की पूर्ति हेतु
डाल देंगे उसका अस्तित्व ही संकट में?
भूलना न होगा कि हमारा अपना जीवन
निर्भर है धरती के अनन्य उपकारों पर
उसे हानि पहुँचाने का अर्थ होगा
अपने ही विनाश को आमंत्रित करना
मनायें पृथ्वी दिवस अतः सच्चे मन से
उसके संरक्षण का शुभ - संकल्प लेकर,
सौंप सकें जिस से आने वाली पीढियों को
सुरक्षित भविष्य की अनमोल विरासत....
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