रविवार, 14 अप्रैल 2024

अँधेरे से उजाले की ओर


 घोर निराशा के पलों  में 

 हम देख नहीं पाते अक्सर 

काले, घने,  बादलों के पीछे छुपी 

सुनहरी किरणों का सच.


   पर,अंधेरा कितना भी घना हो

   टिक नहीं सकता लम्बे समय तक 

   सूरज की अदम्य ऊष्मा और 

    प्रभामण्डल के समक्ष.


     अँधेरे - उजाले का  यह खेल 

    चला आ रहा आदिकाल से, और 

    चाहे अनचाहे  सभी  को बनना पड़ता है 

    इसमें प्रति भागी.

    

      यद्यपि  सुख का एक द्वार बंद होने पर 

      प्रायः खुल जाता है कोई दूसरा द्वार भी 

      किन्तु दुख में डूबी हमारी ऑंखें 

      देखती रहतीं हैं देर तलक बंद किवाड़ों को ही.


     और देख नहीं पातीं उस नये द्वार को 

      जो खुल गया है हमारे सामने 

      सुखद संभावनाओं से भरे भविष्य की 

      झलकियाँ  दर्शाता.

      

     



  



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