सुदूर हिमालय की गोद में विहंसती
धरती पर अलौकिक नन्दन वन की
कल्पना को साकार करती,
प्रकृति की एक जीवंत रचना.
दूर तक बिछी बहुरंगी फूलों की चादर
अपनी दिव्य सुषमा और सुरभि से
रचती रहती है जहाँ,सम्मोहन के,
नित -नवीन आयाम.
हिमाच्छादित पर्वतों से निकली,
दुग्ध - धवल जलधाराएं
सींचती रहती हैं निरंतर
जिसके विस्तृत आँचल को.
उगते सूरज की सुनहरी किरणेँ,
सबसे पहले आकर जगातीं
स्वप्नों में डूबी कलियों को
उनकी गहरी नींद से.
पोंछ देतीं उन के मुख पर जमे,
हिम-शीतल तुषार -कण
और खिला देतीं कोमल पंखुड़ियों को
अपनी ऊष्मा के स्नेहिल स्पर्श से.
भला कौन है वह सुघड़ वन माली,
जिसके अथक श्रम से इस निर्जन में भी,
निरंतर फूलती, महकती रहती है
यह स्वर्गोपम वाटिका?
क्या देखा है किसी ने उसको कभी
इस श्रम- साध्य कार्य में जुटे हुए?
किन्तु दृष्टव्य न होकर भी
स्पष्ट रूप से व्याप्त है जो,
इस अद्भुत संसार के कण - कण में.
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