दुनिया को नहीं चाहिए,
गगनचुम्बी इमारतों वाले महानगर ,
वैभव , विलासिता के सामान से पटे बाज़ार,
मनोरंजन के नये - नये साधन
और कभी समाप्त न होने वाले मुद्रा भण्डार.
नहीं चाहिए,
महाविनाश के उपकरण तैयार करती,
अत्याधुनिक प्रयोगशालाएं, कारखाने ,
अपनी क्रूर महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिये
विश्व भर को अस्थिर करते विवेकशून्य -
युद्ध - पिपासु राजनेता.
नहीं चाहिए,
ऐसे हठधर्मी शासक जो आत्मघाती निर्णयों से -
युद्ध की आग में सारे देश को झोंक दें
और पीढियों की संजोई विरासत को,
राख के ढेर में बदलते देख कर भी
विचलित न हों
आज तो चाहिए
शांति , प्रेम, मानवता के पक्षधर जन- नायक
जो देश - धर्म की सीमाओं से इतर
बचा सकें मानव मात्र के अस्तित्व को ,
उसकी सुविकसित सभ्यता की
अनमोल धरोहर सहित.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें