आतंकवाद
मानव - मन के
निकृष्ट भावों की
कुरूपतम अभिव्यक्ति
स्वार्थ, विद्वेष और असहिष्णुता
की भूमि पर पनपती
सर्वनाशी विषबेल
जो लपेट लेती मानव सभ्यता
के फलते - फूलते उपवनों को
अपने घातक बाहुपाश में.
और जन्म देती घोर अविवेकी कृत्यों को
जिनमें मानव पर मानव का अत्याचार
तोड़ देता मर्यादा की सारी सीमाएँ
आश्चर्य!! कि हजारों वर्षों की
विकास यात्रा के बावजूद
तनिक भी नहीं बदली मनुष्य की
आदिम प्रवृति!!
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