सोमवार, 11 दिसंबर 2023

निर्झरिणी ---- कविता संग्रह




अनुक्रमणिका oo

अ-  नि: सर्ग की छवियां

-  हे  हिमालय!

२- यात्रा-- पर्वत पुत्री की

३ - पहाड़ की नारी 

४ - फूलों की घाटी

५ - निर्झरिणी

६ नदी की का रास्ता 

७ - वृक्ष 

 ८- सागर-दर्शन 

९ - इन दिनों

10  -मकर संक्रांति

११ - वासन्तिका 

१2 --ग्रीष्म का आतप

१3 ---  बरखा रानी

 १४ -- सूर्यास्त की बेला

१५  -- आकाश गंगा

१६  --जागती रहती है रात


ब ---  जीवन - संगीत

१ -- स्वागत, नव वर्ष 

२- आशा  के स्वर

३- मेरे शब्द

४-- गुलाब की आत्मकथा   

५-  कविता, अकविता

६-- छोटी सी बात

७- बुझने न देना  कभी - 

८-   सबसे सुन्दर कविता 

९ -- पतझड़ के बाद

१० -- गौरय्या  की जिद्द

११ - गिरगिट  उवाच 

१२ -  वह सामूहिक संगीत


 स -- श्रद्धा - सुमन 

 १ -  दृष्ट से अदृष्ट की ओर

   २  -  प्रार्थना

   ३ -- ईश्वर  ने नहीं किया...

   ४ - राम, तुम्हें प्रणाम!

   ५ -  अवध के राम

   ६ - -   संत वैज्ञानिक  कलाम

   7 -- चिर - स्मरणीया माँ 



 द - विविधा

 १ - आतंकवाद

  २ - आज के संदर्भ में 

 ३  - हिरोशिमा  की चेतावनी 

 ४- युद्ध के बाद 

५ -दुनिया  को नहीं चाहिये

६ - माता भूमि:  ....   (विश्व पृथ्वी दिवस २२अप्रैल पर )


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

तीर पर कैसे रुकूँ मैं

 क्षितिज तक लहरा रहा चिर -सजग सागर    संजोये अपनी अतल गहराइयों में    सीप, मुक्ता,हीरकों  के कोष अगणित  दौड़ती आतीं निरंतर बलवती उद्दाम लहरें...