रविवार, 10 दिसंबर 2023

हिरोशिमा


     मैं हिरोशिमा!

   मानव -सभ्यता के इतिहास में

   मानव द्वारा मानव के प्रति किये गए 

   सबसे बड़े आपराधिक  कृत्य का

    जीवंत साक्षी.


    याद दिलाना चाहता हूँ  आज 

   एक और महायुद्ध की आशंकाओं से घिरे

   विश्व समुदाय को,  उस दुर्भाग्य पूर्ण  दिन की 

    जब  मुझ पर प्रहार किया गया था 

   सर्वाधिक घातक, विनाशकारी अस्त्र 

    परमाणु बम से .

 

     अगस्त माह की वह  सुहानी सुबह

     जो  शुरुआत थी  एक सामान्य दिन की 

     अचानक ही बदल गई थी दुखों की 

      भयानक  काली,  अँधेरी रात में.


        जब स्वच्छ, निरभ्र आकाश में अकस्मात 

        प्रकट हुआ एक दैत्याकार मशरूम

        जिसने ढक दिया सूरज को भी अपनी कालिमा से 

        और फिर धरती पर उतर कर 

         लिख डाली गाथा मेरे महाविनाश की.


        रेडियोधर्मी धूल, धुएं और आग के  बने

        उस विशालकाय क्रूर दानव ने

        अपने  विशाल पंजों में जकड़  कर 

        तहस नहस कर डाला मेरे अस्तित्व को.


     जब केवल मानव ही नहीं, सारे पशु -पक्षी,

    पेड़ - पौधे, घर आँगन,स्कूल, बाज़ार, कारखाने,

   अस्पताल  और पूजा स्थल तक भी बदल गए थे राख के ढेरों में

   और  मैं, एक जीता जागता शहर,देखते ही देखते

     बन गया था  एक विशाल श्मशान.

    

         बीत गए हैं तब से अनेक दशक 

        और  दब  कर  रह गयी हैं,

        उस अभूतपूर्व त्रासदी की मर्मान्तक कहानियाँ

        इतिहास के निर्जीव पन्नों में.

 

            किन्तु मैं नहीं भूला कुछ भी

           और एक भयानक दुःस्वप्न की तरह 

           आज तक पीछा करती रहती हैं मेरा 

            उस दिन की  दर्दनाक  स्मृतियाँ 

          


            जिसमें हुई जन -धन की अपार हानि का

            कभी नहीं हो सकता  समुचित आकलन,

            जिसमें मिले घाव भर नहीं पाएंगे 

            आने वाली कई सदियों तक.

            

                और वर्तमान में,

                फिर एक परमाणु  युद्ध की आशंका 

                कर रही  मुझे विचलित, और विवश 

                याद दिलाने दुनिया को, अपनी  त्रासद  कहानी

                जिसकी पुनरावृति नहीं होनी चाहिए 

                किसी भी हाल में.

              


              आज के सारे युद्ध - रत  शासकों को  देने चेतावनी!

              कि उनमें से किसी के अविवेकी निर्णय से 

               इस सुन्दर धरती पर फिर से 

              कोई  और शहर, हिरोशिमा न बन जाए.

            

             

             

    

        

         

         

       


      


      

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