दूर पर्वतों की तलहटी में
वर्षों से अकेला खड़ा है वह मकान
जो कभी था हँसता, खेलता, प्यारा घर
एक बड़े परिवार का.
यद्यपि अनाकर्षक लगता है वह आज
उसका आकार और बनावट कहते हैं
कि बड़े परिश्रम और कौशल से निर्मित
किया गया होगा उसे कभी.
तभी तो वर्षों की उपेक्षा के बावजूद
खड़ा है आज भी अपनी जगह पर
बिना कोई शिकायत किये
पहले जैसी ही गरिमा के साथ.
वर्षों से धूप,आँधी -पानी की मार झेलता
संजोये है उस स्वर्णिम दौर की यादों को
अपने अन्तः स्थल में सुरक्षित
किसी अनमोल ख़ज़ाने की तरह
दशकों तक उस परिवार का अंग बन कर
भागी रहा होगा उसके विविध रंगों का
कभी जन्म और विवाह के उमंग उल्लास,
कभी विछोह की दुखदायी अनुभूति का.
बड़े से आँगन में अंकित हैं स्मृतियाँ
पारिवारिक सौहार्द और धूप छाँव की
शिशुओं की मीठी किलकारियों के साथ साथ
बड़े से रसोईघर के बर्तनों की खट -पट भी
देखा होगा इसने बच्चों को बड़ा होते हुए
आपस में खेलते, प्यार करते, झगड़ते हुए
और युवा होने पर नई खुशियों की तलाश में
घर छोड़ कर गगन में उड़ान भरते हुए.
एक -एक कर छोड़ गए सब इसको अकेला
जीता है अब सिर्फ यादों के सहारे
पर उत्सुक भी रहता सुनाने अपनी कहानी
इधर से गुजरते हर आते जाते को.
थोड़ी सी फुर्सत और धीरज अगर हो तो
कुछ देर ठहर कर सुन लें इसकी बातें,
हो सके तो थोड़ी सी सहानुभूति भी दर्शा दें
इसे इसके हाल पर छोड़ जाने से पहले
देखने लगेगा राह फिर आँखें बिछाये
इस उम्मीद में कि किसी एक अच्छे दिन
लौट कर आयेगा इस घर का कोई यहाँ
अपने बचपन की मीठी यादों को दोहराने.
और सार्थक होगी इसकी लम्बी प्रतीक्षा
कहते हैं समय चक्र घूमता रहता सदा ही
और इस अनवरत गति शीलता के क्रम में
दोहराता रहता है स्वयं अपने अतीत को भी.
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