ऋतुराज वसंत!
सुखद परिवर्तन का सन्देश वाहक
धरा पर अवतरित होता है जो
राजसी वैभव के साथ.
जिसकी पगध्वनि सुनाई देते ही
शुरू हो जाता शीत काल का पराभव
समेटने लगता वह ताम - झाम अपना
सत्ता - परिवर्तन की आहट भर पाकर
हटा देता सूरज भी कुछ निकट आकर
चारों ओर छाया कुहासे का आवरण
पोंछ देतीं उसकी असंख्य स्वर्ण किरणेँ
धरती के मुख पर जमे तुषार कण
नींद से जाग उठती प्रमुदित, प्रफुल्लित वह
करने स्वागत मनभावन अतिथि का
प्रसन्न -मन प्रकृति भी आ जुटती सखी सी
सँवारने को फिर से उसका घर आँगन.
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