बीतने को है एक और वर्ष
समाता जा रहा है धीरे धीरे
अतीत की अतल गहराइयों में
विदा लेकर वर्तमान से.
उसके जाने से रिक्त हुई जगह
भरती जाएगी स्वतः ही
आने वाले समय की
गतिविधियों, घटनाओं से.
विश्व रंग - मंच पर घटित होने लगेंगे फिर
जीवन के विविध क्रिया कलाप
एक दूसरे का अनुसरण कर रहे
सूर्य, चंद्र की अनंत छाया में.
घूमता रहेगा अहर्निंश गति -चक्र काल देव का
धूप - छाँव, अँधेरे - उजालों को बाँटता
मिलन की उत्सवी खुशियों के साथ साथ
दुख -दर्द, विछोह की पीड़ा भी लाता.
विदा होता हर वर्ष दे जाता सन्देश
कि जीवन है फूल - काँटों से भरी डगर
चलना होगा इस पर सदा संतुलित रह कर
सरल होगा सफ़र, यह सत्य यदि गुन लो.
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