सूरज के जाने के बाद,
जागती रहती है वह उसके लौटने तक,
घने अँधेरे में लिपटी, अदृश्य रह कर भी,
बनाये रखती अपनी स्वतंत्र अस्मिता.
गाँव- गली, कस्बे, नगर , महानगर,
खेत -खलिहान, कारखाने, अस्पताल,
हिमशिखर, नदियाँ,घाटियाँ , महासागर,
केसर की क्यारियों से निर्जन मरुस्थलों तक.
जागती रहती सदैव,
उन कर्मवीरों का साथ देती,
डटे रहते जो निरंतर कर्तव्य -पथ पर,
ताकि जन- जीवन चलता रहे अनवरत,
रह सकें गतिमान बसें, रेलें, और वायुयान,
अस्पतालों में उपलब्ध हों 'इमरजेंसी' सेवाएं ,
जागते मिलें नर्स, डॉक्टर ड्यूटी पर,
दुर्घटना पीड़ितों को मिल पाए तत्काल राहत.
जागती रहती ऊँचे मचानों पर,
किसी "हलकू" और "झबरा" की नींद को भगाती,
हरी -भरी फसल को चट न कर जाएँ जिस से,
ताक में बैठे, भूखे, जंगली जानवर *1
और कहीं हमदर्द उन बेघरों की बनकर,
जाग रहे ठिठुरते जो संकरे फुटपाथों पर,
अलाव की अस्थाई गर्मी के सहारे,
सुबह की गुनगुनी धूप की बाट जोहते.
'नाईट वाचमैन' के साथ साथ चलती,
टॉर्च और डंडा लेकर सीटी बजाता,
घूमता रहता जो अकेला सड़कों पर,
"जागते रहो " की ऊँची टेर लगाता.
सीमाओं पर प्रहरियों के साथ खड़ी रहती,
बर्फ़ीली चोटियों में दीवार बनकर,
सुनिश्चित करते जो सारे देश की सुरक्षा,
कभी कभी तो देकर प्राणों का बलिदान भी **2
सोती नहीं पल भर कभी कहीं वह
प्रतिकूल मौसम, परिस्थितियों में भी.
जागरूक रहती सदा सूरज के आने तक,
निष्ठावान प्रतिनिधि की भूमिका निभाती.
जागती रहती साँवली, सयानी रात
जीवन - चक्र को गतिमान रखती
सूरज के जाने के बाद भी
उसके लौट आने तलक.
संदर्भ :-
*1-- कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की मर्मस्पर्शी कृति " पूस की रात "
*02:- लांस नायक हनुमंथप्पा और साथियों का बलिदान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें