सोमवार, 3 जुलाई 2023

सागर दर्शन

  धरती के विस्तृत आँचल पर अंकित 

  परम रचयिता का  महाकाव्य,

 अनंत विस्तार  और अतल गहराई का,

    सर्वमान्य  रूपक!



   चमत्कृत करता रहता   निरंतर,

 अखिल  संसार के प्राणि मात्र को 

  अपने वृहद आकार  और 

    चिरंतन गतिशीलता  से.


 अदम्य वेग से  तट की ओर  आती 

  दैत्याकार लहरें ,भयभीत  करतीं सबको,

लौट  जातीं किन्तु किनारों को  छू चुपके  से 

सीपियों,  शँखों  के सुन्दर उपहार छोड़ कर.


   अगणित जीव जंतुओं  के विपुल संसार को,

     देता  जो फलने-  फूलने का उपादान,

     सहेज रखता अपने गहन अन्तःस्थल  में 

     दुर्लभ  रत्नों के अशेष भंडार भी. 

    

     चाहे तो कई  गुना विस्तार कर सकता ,

     शक्ति, और  वैभव  के इस साम्राज्य का 

     अथाह जलराशि में  समूची  धरती को 

     स्वयं में अनायास ही समाहित  कर.


       बस,  लालच नहीं  स्वभाव  उसका,

     नहीं रखता राज्य विस्तार की  आकांक्षा 

    रहता  सदैव  अपनी मर्यादा  में बंधकर,

    सीमित रहकर भी असीम गरिमा से मंडित.

   


   अभिमान होता होगा  आकाश को,

 अगणित सूर्य, चंद्र,  नक्षत्रों के कोष पर

    जगमगा रहे जो उसके विस्तृत प्रांगण में 

     युग -युगांतर से, अहर्निंश .


       किन्तु धरा सुंदरी भी  कम समृद्ध  नहीं,

     गौरवान्वित  है   इस अमूल्य निधि को पाकर,

     स्वर्गिक है  जिसका  सौंदर्यमय  प्रभामण्डल,

      रत्न - जटित नीले आकाश   के सदृश्य ही.

     

      

    

   

https://photos.app.goo.gl/4rijEr261pNfQR9U8

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