सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

आतंकवाद


      आतंकवाद           

      मानव - मन  के 

      निकृष्ट भावों की

      कुरूपतम  अभिव्यक्ति 


    स्वार्थ, विद्वेष और असहिष्णुता

    की भूमि पर पनपती 

     सर्वनाशी विषबेल


     जो लपेट लेती मानव सभ्यता

     के फलते - फूलते उपवनों को

     अपने घातक बाहुपाश में.


     और जन्म देती घोर अविवेकी कृत्यों को

     जिनमें मानव पर मानव का अत्याचार

       तोड़ देता मर्यादा की सारी  सीमाएँ


        आश्चर्य!! कि हजारों वर्षों की

         विकास यात्रा के  बावजूद

          तनिक भी नहीं बदली मनुष्य की

          आदिम प्रवृति!!

     

बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

बुझने न देना कभी ...




  बुझने न देना कभी भी

अपने अंदर की चिंगारी

जिलाये रखना उसे हर हाल में 

 प्राण -पण से यत्न करके.


 क्योंकि इसमें छिपी ज्योति शलाका 

  प्रज्ज्वलित कर सकती पुनः,

  बुझते हुए दीपकों को भी, और  दिखा सकती तुम्हें

  तुम्हारी  अभीप्सित मंज़िल का रास्ता.


जो भय, निराशा, और दुविधा के

 घोर अंधकार के बीच भी 

 अपनी   अदृश्य  उपस्थिति से 

 सँभाले रहती तुम्हें सच्चे मित्र की तरह.

 

  प्रकाश का यह नन्हा सा कण है 

 तुम्हारी अंतर्निहित  क्षमता का उत्स

  जिस पर कर सकते हो भरोसा

  हर प्रतिकूल मौसम में.

  



शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023

सूर्यास्त के बाद


दिन का वह अंतिम प्रहर

जब परम -प्रतापी सूर्य देव

अपने विशाल साम्राज्य की बागडोर

 चाँद, तारों  को सौंप,चले जाते हैं

 क्षितिज के उस पार

 अपनी अनवरत यात्रा में


  गोधूलि की  वह पवित्र वेला 

  जब आकाश की गहन शांति

   भंग होने लगती है धीरे - धीरे

 विश्राम के लिये नीड़ों की ओर लौटते

 पंछियों की व्याकुल फड़फड़ाहट

  और तुमुल कोलाहल  से.


  दिवस का अवसान होता देख

  अंधकार पसारने  लगता है अपने पाँव

  तभी उसे चुनौती देते जल उठते हैं असंख्य दीप

   हर  सड़क, गली, और चौराहे पर

   ताकि घर लौटता कोई थका -हारा पथिक

    अँधेरे में भटक, अपना रास्ता न खो बैठे!!



बुधवार, 4 अक्टूबर 2023

सबसे सुन्दर कविता


 उस दिन

मन में उमड़ते भावों को

शब्दों में ढाल कर, बड़े चाव से

 रची मैंने एक कविता.


फिर बारम्बार उसे पढ़ते हुए

 आनंदानुभूति से भावविभोर हो

 आत्म - विमुग्ध  सी बैठी रही

  कुछ देर तक.


 किन्तु फिर महसूस हुआ 

कि यह तो है बड़ी साधारण सी रचना

इसमें कुछ भी अनुपम,आकर्षक 

 या असाधारण नहीं.


 अतः मस्तिष्क से आग्रह किया

 उसे कुछ बेहतर बनाने के लिये

 उसने अनेक अलंकारिक शब्दों से सजा कर

 पुरानी रचना का काया -कल्प ही कर डाला.


  प्रसन्न थी मैं कि इन नवीन आभरणों  से

  उत्कृष्ट बन जाएगी मेरी साधारण सी कविता

   और पायेगी भरपूर स्नेह एवं प्रशंसा 

   अपने सौंदर्य और सरसता के लिये


   किन्तु,  जब पढ़ने लगी, तो उलझ कर रह गयी 

   दुरूह शब्दावली की भूलभुलैया में

   फिर न रसों का आस्वादन  कर पायी

    न अलंकारों की सराहना.


    हताश हो कर ढूँढने  लगी जब 

     मूल रचना को, उसकी आत्मा को

    तो  पाया  कि निस्पंद सी पड़ी थी वह 

     जैसे किसी अनचाहे बोझ तले.

     


     

        तब  मैंने  समझ लिया कि उसे 

      अपने मूल स्वरुप में  लौटाना होगा 

      जान गयी थी कि सीधे ह्रदय से निकले शब्द ही 

      होते हैं सबसे सुन्दर कविता.



     

      


तीर पर कैसे रुकूँ मैं

 क्षितिज तक लहरा रहा चिर -सजग सागर    संजोये अपनी अतल गहराइयों में    सीप, मुक्ता,हीरकों  के कोष अगणित  दौड़ती आतीं निरंतर बलवती उद्दाम लहरें...