बुधवार, 31 जनवरी 2024

बालिका दिवस पर


  उसका भी अधिकार है

  जन्म लेने का

 आने दो  सुरक्षित

  उसे  संसार में.


       माँ की गोद में आकर

     अधिकार है उसे  विकसित होने का

      मत काटो निर्दयता से 

      उसके जीवन की डोर को.


      निरन्तर आगे  बढ़ते जाना 

      उसकी भी प्रकृति है,

       जाने दो निर्बाध उसे 

      अपने चुने हुए पथ पर 


       अवरोधक मत बनो

       उसकी प्रगति यात्रा में 

       हो सके तो सहायक बन कर

       सँवारो उसका जीवन.


        

दिसंबर की धूप


 दिसंबर की धूप  --

जैसे स्वर्ग से उतरी कोई स्वर्णपरी

 धरती के मुख पर जमे  तुषार कणों को

 पोंछती अपने कोमल स्पर्श से.


    दिसंबर की धूप  --

    जैसे  ग्रीष्म के अत्याचारों से त्रस्त 

    धरती की प्यास बुझाने उतरतीं 

     सावन की पहली ठंडी बौछारें.


      दिसंबर की धूप  --

     जैसे लम्बे अरसे से  बेरोजगार युवक के लिये 

     नौकरी का नियुक्ति पत्र लाता

      चिर - परिचित डाकिया.

      

      


      दिसंबर की धूप  --

      जैसे जाड़े की रात में फुटपाथ पर

      कांपते भिखारी को मिलने वाला

      गर्म कम्बल का अप्रत्याशित  उपहार.


      दिसंबर की धूप  --

     जैसे युद्ध में लापता सैनिक के परिवार को

     उसके सुरक्षित  होने की शुभ- सूचना देता

      सरकारी सन्देश 

       

      

     

      

मंगलवार, 30 जनवरी 2024

गाँव वाला घर


 दूर पर्वतों की तलहटी  में

वर्षों से अकेला खड़ा है वह मकान

जो कभी था हँसता, खेलता, प्यारा घर

 एक बड़े परिवार का.


यद्यपि अनाकर्षक लगता है वह आज 

उसका आकार और बनावट कहते हैं 

 कि बड़े परिश्रम और कौशल  से निर्मित 

 किया गया होगा उसे कभी.


   तभी तो वर्षों की उपेक्षा के बावजूद

    खड़ा है आज भी अपनी जगह पर

    बिना कोई  शिकायत  किये 

    पहले जैसी ही गरिमा के साथ.

      


        वर्षों से धूप,आँधी -पानी की मार झेलता 

        संजोये है उस स्वर्णिम दौर की यादों को

        अपने अन्तः स्थल में सुरक्षित 

        किसी अनमोल ख़ज़ाने की तरह

       


       दशकों तक उस परिवार का  अंग  बन कर

       भागी रहा होगा उसके  विविध रंगों का 

       कभी जन्म और विवाह के उमंग उल्लास,

       कभी विछोह की दुखदायी अनुभूति का.


         बड़े से आँगन में अंकित हैं  स्मृतियाँ

         पारिवारिक सौहार्द और  धूप छाँव की 

        शिशुओं की मीठी किलकारियों के साथ साथ 

        बड़े से रसोईघर के बर्तनों की खट -पट  भी 


          देखा होगा इसने बच्चों को बड़ा होते हुए 

         आपस में खेलते, प्यार करते, झगड़ते हुए 

         और युवा होने पर नई खुशियों की तलाश में 

           घर छोड़ कर गगन में उड़ान भरते हुए.


           एक -एक कर  छोड़ गए सब इसको अकेला 

           जीता है अब सिर्फ यादों के सहारे

            पर उत्सुक भी रहता सुनाने अपनी कहानी 

            इधर से गुजरते  हर  आते जाते को.


            थोड़ी सी फुर्सत और धीरज अगर  हो तो 

            कुछ देर ठहर कर सुन लें इसकी  बातें,

           हो सके तो थोड़ी सी सहानुभूति भी दर्शा दें 

            इसे इसके हाल पर छोड़  जाने से पहले


           देखने लगेगा राह  फिर आँखें  बिछाये

           इस उम्मीद में कि किसी एक अच्छे दिन 

           लौट कर आयेगा इस घर का कोई यहाँ

          अपने बचपन की मीठी यादों को  दोहराने.


         और सार्थक होगी इसकी लम्बी प्रतीक्षा

        कहते हैं समय चक्र  घूमता रहता सदा ही

          और इस अनवरत गति शीलता के क्रम में 

          दोहराता रहता है स्वयं  अपने अतीत को भी.

          


        




             


            

          

            

           

           

           

         

        



   



मंगलवार, 2 जनवरी 2024

स्वागत, नव - वर्ष


       स्वागत नव -वर्ष!!

  प्रतीक्षा थी तुम्हारी व्यग्रता से ,

   इस  आशा और विश्वास  के साथ

   कि कुछ वांछित परिवर्तन

   अवश्य लेकर आओगे तुम.


  अब आ गए हो तो चाहते हैं, 

 सफल और सार्थक हो तुम्हारा प्रवास,

  जिसकी स्मृतियाँ सुख देती रहें,

  आने वाले अनेक वर्षों तक.


   देखती हूँ कि साथ में लाये हो, 

रहस्यमय उपहारों का एक झोला भी,

जिस पर जा रही है मेरी दृष्टि बार, बार 

  अनायास ही.


   मेरी बात को अन्यथा न लेना

   नहीं माँगने वाली हूँ अपने लिये

   कोई अनमोल वस्तु , अथवा अन्य 

   ऐसा कुछ जो तुम दे न सको.


  लेकिन  देना चाहती हूँ तुम्हें

  अपनी माँगों  की  एक सूची

  जो बहुत लम्बी तो नहीं, किन्तु 

  महत्वाकांक्षी  है अवश्य ही.


    मेरी इस  सूची में सबसे ऊपर है,

    युद्ध की विभीषिका से पीड़ित,

    अशांत  क्षेत्रों के लिये स्थायी शांति, 

    सुरक्षा,और स्थिरता का वातावरण.


    सत्ता और शक्ति के शीर्ष पर बैठे,

    नीति- नियंताओं, शासकों को,

    विवेक पूर्ण, मानवतावादी  दृष्टि- कोण,

    अपनाने का आत्म ज्ञान.


     दुनिया भर  के बेघरों के लिये

     सुरक्षित आशियाने,

     दुर्योग से अनाथ हुए बच्चों के लिये

     स्नेही परिवार का  आश्रय.


        विश्व भर के लोगों के मन में

      प्रकृति के प्रति माँ जैसा सम्मान, ताकि 

      रह सके अटूट, मानव और प्रकृति का 

      कल्याणकारी बंधन.


       अभी  के लिये बस इतना ही,

       दे सकोगे यदि इनमें से कुछ भी,

      तो कृतज्ञ  होंगे हम सब तुम्हारे प्रति 

      सदा सदा के लिये. 

      


     


      


तीर पर कैसे रुकूँ मैं

 क्षितिज तक लहरा रहा चिर -सजग सागर    संजोये अपनी अतल गहराइयों में    शंख,मुक्ता,हीरकों  के कोष दुर्लभ  दौड़ती आतीं निरंतर बलवती उद्दाम लहरें...