रविवार, 23 जुलाई 2023

पहाड़ की नारी


       प्रकृति  की गोद में  जन्म लेकर 

   दादी -नानी के कठिन संघर्षो की विरासत को

   सँभालते सँभालते , बन गई  वह स्वयं 

    उसकी एक  मजबूत  कड़ी.


       पर्वतों और घाटियों के बीच बसे गाँव के

      ऊबड़ - खाबड़  रास्तों पर  चढ़ते, उतरते

      सीख गई  दृढ़ता  से सामना करना 

       नित नई चुनौतियों का.

       

      

        जंगल, पहाड़, नदी  और झरनों  के बीच 

        खेलता, विचरता उसका  भोला बचपन 

        परिपक्व होता गया उन्ही के गुणों को

         आत्मसात करता.


               और धीरे  धीरे जान गई वह

             कि  पेड़ और जंगल नहीं जड़  वस्तुएँ 

           वे तो हैं वहाँ के  लोगों की जीवन रेखा 

          भोजन, जल और प्राणवायु  के अनन्य स्रोत.

           

           इसलिए जब आंच आती दिखाई  दी

           प्रकृति  के इस अनमोल खजाने  पर

         तो छेड़  दिया एक अनोखा आंदोलन उसने 

         अपनी विरासत को  नष्ट होने से बचाने  को 


          खड़ी हो गई गाँव भर की स्त्रियों के साथ 

       अपनी अमूल्य धरोहर को चारों  ओर से घेर 

       एक स्वर में   " पहले हमें  काटो "

          का कर्णभेदी उद्घोष करती.


          लौटना पड़ा उन स्वार्थी व्यवसाइयों को 

         जो आये थे वहाँ अपने दल - बल  के साथ 

         भोले भाले ग्रामीणों की वन- सम्पदा पर 

         निर्ममता से कुठाराघात  करने.


             पहाड़ की नारी  की वह  साहसी पहल 

          उद्वेलित कर गई  बड़े - बड़े बुद्धिजीवियों को भी 

          और उस छोटे से गाँव से जन्मा विचार

           बनता गया  धीरे धीरे  विश्वव्यापी आंदोलन.


           सर्व सम्मति से  मानता  है  विश्व समुदाय आज 

           कि ये  मूक जंगल हैं जीवन के आधार तंत्र

           और इन्हें  अनियंत्रित ढंग से नष्ट करना

           निमंत्रण देना है  स्वयं अपने  ही विनाश को.

                             

                   ( चिपको आंदोलन की प्रणेता  स्वर्गीया गौरा  देवी की पुण्य -स्मृति को विनम्र श्रद्धांजलि स्वरुप )

   

       

        

         

     

       


         

           

          

          



   

        

       

     

     

       

       

       

रविवार, 16 जुलाई 2023

फूलों की घाटी


   

   सुदूर  हिमालय की गोद में  विहंसती 

   धरती पर अलौकिक नन्दन वन की 

   कल्पना  को साकार करती,

    प्रकृति की एक  जीवंत  रचना.

 

    

      

         दूर  तक  बिछी बहुरंगी फूलों  की चादर

        अपनी  दिव्य सुषमा और सुरभि से 

          रचती रहती है जहाँ,सम्मोहन के,

         नित -नवीन आयाम.


        हिमाच्छादित  पर्वतों से निकली,

        दुग्ध - धवल  जलधाराएं 

        सींचती रहती हैं निरंतर 

        जिसके विस्तृत आँचल  को.

       

        


         उगते सूरज की सुनहरी  किरणेँ, 

         सबसे पहले आकर  जगातीं 

        स्वप्नों में डूबी  कलियों को 

          उनकी गहरी  नींद  से.


        पोंछ  देतीं   उन के मुख पर  जमे,

        हिम-शीतल  तुषार -कण 

      और खिला देतीं कोमल पंखुड़ियों को 

       अपनी ऊष्मा के स्नेहिल स्पर्श से.



      भला  कौन  है वह  सुघड़  वन माली,

      जिसके अथक श्रम  से  इस निर्जन में भी,

      निरंतर फूलती, महकती रहती  है

      यह स्वर्गोपम वाटिका?


          क्या देखा  है किसी ने  उसको  कभी

           इस श्रम- साध्य  कार्य में जुटे हुए?

          किन्तु  दृष्टव्य न होकर भी 

          स्पष्ट रूप  से व्याप्त है जो,

         इस अद्भुत संसार  के  कण - कण  में.

        

           

           

           

    

             


           

         

         

रविवार, 9 जुलाई 2023

दुनिया को नहीं चाहिए ....


    दुनिया को नहीं चाहिए,

    गगनचुम्बी  इमारतों वाले   महानगर ,

    वैभव , विलासिता के सामान से पटे बाज़ार,

    मनोरंजन के नये - नये  साधन 

    और कभी  समाप्त न होने वाले मुद्रा भण्डार.


    नहीं चाहिए,

   महाविनाश  के उपकरण तैयार करती,

   अत्याधुनिक  प्रयोगशालाएं, कारखाने ,

   अपनी क्रूर महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिये

   विश्व भर को अस्थिर करते  विवेकशून्य  -

   युद्ध - पिपासु राजनेता.


    नहीं चाहिए,

   ऐसे  हठधर्मी शासक जो आत्मघाती निर्णयों से -

   युद्ध  की आग में सारे देश को  झोंक दें 

  और पीढियों की संजोई विरासत को,

  राख के ढेर में बदलते देख कर भी

   विचलित  न हों


     आज  तो चाहिए 

     शांति , प्रेम, मानवता के पक्षधर जन- नायक

     जो  देश - धर्म की सीमाओं से  इतर   

     बचा सकें मानव मात्र के अस्तित्व को , 

     उसकी  सुविकसित  सभ्यता की 

     अनमोल धरोहर  सहित.

   


     

   

  

    

  

  

   

  


   

शनिवार, 8 जुलाई 2023

वृक्ष


 वृक्ष

सदैव मौन  रह कर भी बहुत कुछ कहते हैं

 आश्वस्त करते हैं,

 कि अनेक चुनौतियों  के बावज़ूद भी

 बना रहेगा जीवन का अस्तित्व धरती पर.


  समुद्र की अतल गहराइयों  से निकल 

 तट  से आगे बढ़  पैर  पसारते 

 धरती पर अपनी जड़ें  जमाते

 पहले साहसी  प्राणी.


 जिनकी जीवंत  उपस्थिति से

 मिला धरती को पहला हरित परिधान

और प्रारम्भ हुई अनवरत  चलने वाली 

  सृजन की विलक्षण प्रक्रिया.


    सदियों तक अविचल  खड़े रहकर

   सिद्ध करते  जो अपनी अप्रतिम जिजीविषा

  झेल  कर  प्रकृति की कठिनतम चुनौतियों को 

   हर  बदलते  मौसम और परिस्थिति में.


    

सोमवार, 3 जुलाई 2023

सागर दर्शन

  धरती के विस्तृत आँचल पर अंकित 

  परम रचयिता का  महाकाव्य,

 अनंत विस्तार  और अतल गहराई का,

    सर्वमान्य  रूपक!



   चमत्कृत करता रहता   निरंतर,

 अखिल  संसार के प्राणि मात्र को 

  अपने वृहद आकार  और 

    चिरंतन गतिशीलता  से.


 अदम्य वेग से  तट की ओर  आती 

  दैत्याकार लहरें ,भयभीत  करतीं सबको,

लौट  जातीं किन्तु किनारों को  छू चुपके  से 

सीपियों,  शँखों  के सुन्दर उपहार छोड़ कर.


   अगणित जीव जंतुओं  के विपुल संसार को,

     देता  जो फलने-  फूलने का उपादान,

     सहेज रखता अपने गहन अन्तःस्थल  में 

     दुर्लभ  रत्नों के अशेष भंडार भी. 

    

     चाहे तो कई  गुना विस्तार कर सकता ,

     शक्ति, और  वैभव  के इस साम्राज्य का 

     अथाह जलराशि में  समूची  धरती को 

     स्वयं में अनायास ही समाहित  कर.


       बस,  लालच नहीं  स्वभाव  उसका,

     नहीं रखता राज्य विस्तार की  आकांक्षा 

    रहता  सदैव  अपनी मर्यादा  में बंधकर,

    सीमित रहकर भी असीम गरिमा से मंडित.

   


   अभिमान होता होगा  आकाश को,

 अगणित सूर्य, चंद्र,  नक्षत्रों के कोष पर

    जगमगा रहे जो उसके विस्तृत प्रांगण में 

     युग -युगांतर से, अहर्निंश .


       किन्तु धरा सुंदरी भी  कम समृद्ध  नहीं,

     गौरवान्वित  है   इस अमूल्य निधि को पाकर,

     स्वर्गिक है  जिसका  सौंदर्यमय  प्रभामण्डल,

      रत्न - जटित नीले आकाश   के सदृश्य ही.

     

      

    

   

https://photos.app.goo.gl/4rijEr261pNfQR9U8

तीर पर कैसे रुकूँ मैं

 क्षितिज तक लहरा रहा चिर -सजग सागर    संजोये अपनी अतल गहराइयों में    सीप, मुक्ता,हीरकों  के कोष अगणित  दौड़ती आतीं निरंतर बलवती उद्दाम लहरें...