जब कभी अपनी आर्द्रता खोकर
शुष्क और कठोर बन जाये मेरा यह ह्रदय
तब अपनी असीम करुणा की बौछार से
इसे सिंचित करने आ जाना
मेरे जीवन में प्रभु!
जब खो जाये जीवन से
लालित्य और सरसता
किसी मधुर गीत के बोल बनकर
बरस पड़ना मेरे मन की धरती पर
जीवन- संघर्ष का तुमुल कोलाहल
जब सब ओर से घेर, एकांत में बंदी बना ले मुझे
तब हे मेरे मौन के स्वामी, तुम आ जाना मेरे पास
अपनी परम शांति और विश्राम लेकर
जब मेरा भिक्षुक सा दिन ह्रदय
किसी अँधेरे कोने में दुबका बैठा हो
तुम अपने राजसी दल - बल के साथ
चले आना मेरे पास, सारे द्वार तोड़कर
जब अंतहीन कामनायें मस्तिष्क को
भ्रम और धूल से आच्छादित कर अंधा बना दें
तब, चिर जागृत और पावन, हे मेरे प्रभु, मुझे मार्ग दिखाने
प्रकट हो जाना तुम, अपने दिव्य प्रकाश और घोर गर्जन के साथ.
( गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजलि से एक कविता का हिंदी रूपान्तर )
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