सोमवार, 18 दिसंबर 2023

ग्रीष्म का आतप


     

        जेठ  का तीसरा सप्ताह

        गर्मी की  चरम  सीमा 

       सूरज  जैस आग का गोला

       धरती, कुम्हार का आंवा 


     पेड़ - पौधे ,पशु - पक्षी 

     झुलस रहे  चिलचिलाती  धूप  में

     हवा भी नहीं देती राहत

    बन गयी स्वयं ही तपती लू


       सूख रहे कुएँ, पोखर,ताल- तलैया

        पड़ रहीं खेतों पर गहरी दरारें

        किसान भयाक्रांत , आशंकित

       अकाल की कल्पना भर से .


       मिल पायेगी कभी  क्या राहत  

      मौसम के इन अत्याचारों  से?

      हर दिन लगता कठोर यातना सा

     हर रात बीतती एक- एक पल गिन कर


         घोर निराशा के बीच भी बार-बार

       आश्वस्त करता मेरा अंतर्मन मुझको

        कि  बस अब और प्रतीक्षा नहीं बाकी

      मौसम बदलने का समय है सन्निकट ही.


        कि शीघ्र ही किसी ढलती  दुपहरी में

        दूर क्षितिज पर अचानक प्रकट  होकर

        घने , काले बादल  छा जायेंगे गगन पर

       विद्युत्  के नृत्य  संग  मेघ मल्हार गाते .


         बरसने लगेंगी धीरे- धीरे धरा पर 

         शीतल जल की अमृत -तुल्य  बूँदें

         मृत -प्राय धरती की प्यास बुझा कर

         फिर से उसे  नया जीवन दिलाती.


          ऋतु -चक्र प्रकृति का सदा- सदा से

           घूमता आया है  यूँ ही निरन्तर

          लाता रहता है सुनिश्चित क्रम में 

       अलग अलग मौसम, बारी - बारी से.

       


   





शुक्रवार, 15 दिसंबर 2023

माता भूमि : पुत्रो अहम् पृथिव्या :



           पृथ्वी दिवस!
       विश्व - पंचांग  में 
      पृथ्वी  के सम्मान  हेतु
  .   समर्पित  एक दिन
       
        
        
       इस मूक, परम हितैषी
       मातृ -तुल्य सत्ता के प्रति
       श्रद्धा और कृतज्ञता
       ज्ञापित  करने का दिन 


         क्योंकि वह नहीं है मात्र मिटटी, पत्थर

        वरन, एक सजीव,सामर्थ्यवान सत्ता

        असीम धैर्य , सौन्दर्य और औदार्य की 

         सजीव प्रतिमा.


          जन्मदायिनी माँ जैसी स्नेहशीला

          जो पालन करती जन्म से ही, और

         फैला देती अपनाआँचल हमारे लिये 

          खेल कूद कर बड़ा होने को.


         युग - युग से  बाँटती आई  सबको 

        स्वस्थ, सुखद जीवन जीने के सामान

        सिर्फ भोजन, जल, प्राण- वायु  ही नहीं,

         भौतिक समृद्धि के अनंत उपादान भी.


            किन्तु आज उसके अपने ही स्वास्थ्य पर

           पड़ती दिख  रही  ग्रहण की काली छाया 

           विषैले रसायन और प्लास्टिक का दुष्प्रभाव

            करता जा रहा निरंतर क्षरण  उसका

    


             उसके संसाधनों का अनियंत्रित दोहन भी 

             बदल रहा  जलवायु के संतुलन को 

            परिणाम  जिसका परिलक्षित हो रहा 

              दैवी आपदाओं के रूप में.


             तब क्या हम कृतघ्न संतानों की तरह

             बनते रहेंगे उसके पराभव का कारण

           अपने संकीर्ण स्वार्थो  की पूर्ति हेतु

            डाल देंगे उसका अस्तित्व ही संकट में?


             भूलना न होगा कि हमारा अपना जीवन

             निर्भर है धरती के अनन्य उपकारों पर 

               उसे हानि पहुँचाने का  अर्थ  होगा

             अपने ही विनाश को आमंत्रित करना  


             मनायें पृथ्वी दिवस अतः सच्चे मन से

            उसके संरक्षण  का शुभ  - संकल्प  लेकर,

             सौंप सकें  जिस से आने वाली पीढियों  को

             सुरक्षित भविष्य की अनमोल विरासत....

             

              

                 

               


             

         



  


           

          

       

       

      

गुरुवार, 14 दिसंबर 2023

आज की चिंता


 पिछले कई महीनों से 

टेलीविज़न के परदे पर छाये रहते हैं

युद्धभूमि के विचलित कर देने वाले  दृश्य

 विद्युत - गति से एक छोर से दूसरे की ओर

 सनसनाते  मिसाइल, राकेट और बम वर्षक विमान


    रह - रह कर गड़गड़ाहट से थर्राता आकाश,

    और अप्रत्याशित बमवर्षा को झेलती धरती 

     धूल,  धुएं  और आग की लपटों  के बीच

    प्राण बचाने को  बदहवास  इधर -उधर भागते

    निर्दोष नागरिक.


      नित्य प्रति की सामान्य दिनचर्या पर 

     आतंक की  काली छाया  घिरते देख

     स्वयं से प्रश्न करते आबाल वृद्ध, नर, नारी

     कि क्या है उनका दोष  जो झेलनी पड़ रही है

      यह घोर आपदा!


      चूंकि हिंसा  सदैव उकसाती है प्रतिहिंसा को

     और प्रतिशोध का  क्रोधी पशु तो 

     सदैव सक्रिय रहता है अतीत को दुहराने के लिये 

     अतः कब और कहाँ जाकर रुकेगा यह संघर्ष

      यह बता पायेगा केवल भविष्य!


       जानती हूँ कि  निरर्थक है आशा करना

       कि शीघ्र  समाप्त हो जायगा यह उन्मादी  दौर 

        फिर भी, चाहती हूँ कि हो कोई चमत्कार

       और सदबुद्धि  मिले इन युद्ध -रत पक्षों को 

       सद्भावना पूर्वक  अपने विवादों को सुलझाने की.


        ताकि हो सके सके इस  धरती पर 

        शांतिपूर्ण सह - अस्तित्व के स्वर्णिम युग का आविर्भाव 

       और सुरक्षित हो सके मानव मात्र का अस्तित्व

       अविवेकी हिंसा और विनाश के दुष्प्रभाव  से.

  


        





      

     

     


       

    

सोमवार, 11 दिसंबर 2023

निर्झरिणी ---- कविता संग्रह




अनुक्रमणिका oo

अ-  नि: सर्ग की छवियां

-  हे  हिमालय!

२- यात्रा-- पर्वत पुत्री की

३ - पहाड़ की नारी 

४ - फूलों की घाटी

५ - निर्झरिणी

६ नदी की का रास्ता 

७ - वृक्ष 

 ८- सागर-दर्शन 

९ - इन दिनों

10  -मकर संक्रांति

११ - वासन्तिका 

१2 --ग्रीष्म का आतप

१3 ---  बरखा रानी

 १४ -- सूर्यास्त की बेला

१५  -- आकाश गंगा

१६  --जागती रहती है रात


ब ---  जीवन - संगीत

१ -- स्वागत, नव वर्ष 

२- आशा  के स्वर

३- मेरे शब्द

४-- गुलाब की आत्मकथा   

५-  कविता, अकविता

६-- छोटी सी बात

७- बुझने न देना  कभी - 

८-   सबसे सुन्दर कविता 

९ -- पतझड़ के बाद

१० -- गौरय्या  की जिद्द

११ - गिरगिट  उवाच 

१२ -  वह सामूहिक संगीत


 स -- श्रद्धा - सुमन 

 १ -  दृष्ट से अदृष्ट की ओर

   २  -  प्रार्थना

   ३ -- ईश्वर  ने नहीं किया...

   ४ - राम, तुम्हें प्रणाम!

   ५ -  अवध के राम

   ६ - -   संत वैज्ञानिक  कलाम

   7 -- चिर - स्मरणीया माँ 



 द - विविधा

 १ - आतंकवाद

  २ - आज के संदर्भ में 

 ३  - हिरोशिमा  की चेतावनी 

 ४- युद्ध के बाद 

५ -दुनिया  को नहीं चाहिये

६ - माता भूमि:  ....   (विश्व पृथ्वी दिवस २२अप्रैल पर )


रविवार, 10 दिसंबर 2023

हिरोशिमा


     मैं हिरोशिमा!

   मानव -सभ्यता के इतिहास में

   मानव द्वारा मानव के प्रति किये गए 

   सबसे बड़े आपराधिक  कृत्य का

    जीवंत साक्षी.


    याद दिलाना चाहता हूँ  आज 

   एक और महायुद्ध की आशंकाओं से घिरे

   विश्व समुदाय को,  उस दुर्भाग्य पूर्ण  दिन की 

    जब  मुझ पर प्रहार किया गया था 

   सर्वाधिक घातक, विनाशकारी अस्त्र 

    परमाणु बम से .

 

     अगस्त माह की वह  सुहानी सुबह

     जो  शुरुआत थी  एक सामान्य दिन की 

     अचानक ही बदल गई थी दुखों की 

      भयानक  काली,  अँधेरी रात में.


        जब स्वच्छ, निरभ्र आकाश में अकस्मात 

        प्रकट हुआ एक दैत्याकार मशरूम

        जिसने ढक दिया सूरज को भी अपनी कालिमा से 

        और फिर धरती पर उतर कर 

         लिख डाली गाथा मेरे महाविनाश की.


        रेडियोधर्मी धूल, धुएं और आग के  बने

        उस विशालकाय क्रूर दानव ने

        अपने  विशाल पंजों में जकड़  कर 

        तहस नहस कर डाला मेरे अस्तित्व को.


     जब केवल मानव ही नहीं, सारे पशु -पक्षी,

    पेड़ - पौधे, घर आँगन,स्कूल, बाज़ार, कारखाने,

   अस्पताल  और पूजा स्थल तक भी बदल गए थे राख के ढेरों में

   और  मैं, एक जीता जागता शहर,देखते ही देखते

     बन गया था  एक विशाल श्मशान.

    

         बीत गए हैं तब से अनेक दशक 

        और  दब  कर  रह गयी हैं,

        उस अभूतपूर्व त्रासदी की मर्मान्तक कहानियाँ

        इतिहास के निर्जीव पन्नों में.

 

            किन्तु मैं नहीं भूला कुछ भी

           और एक भयानक दुःस्वप्न की तरह 

           आज तक पीछा करती रहती हैं मेरा 

            उस दिन की  दर्दनाक  स्मृतियाँ 

          


            जिसमें हुई जन -धन की अपार हानि का

            कभी नहीं हो सकता  समुचित आकलन,

            जिसमें मिले घाव भर नहीं पाएंगे 

            आने वाली कई सदियों तक.

            

                और वर्तमान में,

                फिर एक परमाणु  युद्ध की आशंका 

                कर रही  मुझे विचलित, और विवश 

                याद दिलाने दुनिया को, अपनी  त्रासद  कहानी

                जिसकी पुनरावृति नहीं होनी चाहिए 

                किसी भी हाल में.

              


              आज के सारे युद्ध - रत  शासकों को  देने चेतावनी!

              कि उनमें से किसी के अविवेकी निर्णय से 

               इस सुन्दर धरती पर फिर से 

              कोई  और शहर, हिरोशिमा न बन जाए.

            

             

             

    

        

         

         

       


      


      

शनिवार, 9 दिसंबर 2023

आशा के स्वर


 आशा के स्वर

यूँ तो मधुर होते हैं सदैव ही

किन्तु लगते हैं और भी अधिक कर्णप्रिय 

 जब निराशा के घनीभूत अंधकार में 

 नहीं दिखाई देता कोई भी रास्ता  


  सुनाई देते हैं ये उस एम्बुलेंस के सायरन में 

  जो भाग रही होती है बेतहाशा अस्पताल की ओर 

   दुर्घटना के शिकार घायलों को लेकर 

   ताकि बचाये जा सकें  उनके अमूल्य जीवन


  फायर ब्रिगेड की लगातार बजती घंटियों में

   जो दौड़ रही होती है घटनास्थल की ओर 

  अग्नि की विनाशकारी लपटों  से जूझ कर 

   जान -माल  की हानि  को रोकने.


   

 ग्रीष्म की चिलचिलाती  दोपहरी में 

राहत का सन्देश लेकर, अचानक ही

क्षितिज पर उमड़ आये  बादलों की 

 चिर - प्रतीक्षित  गड़गड़ाहट में.


     

     लम्बी  प्रतीक्षा के बाद 

    प्रसूति गृह से आती नवजात की किलकारी में 

   जो  संकेत देती अपार संभावनाओं  से पूर्ण 

    एक नये जीवन के आरम्भ का.


    आशा के स्वर होते हैं भिन्न एक दूसरे से

     किन्तु एक गुण  में हैं  वे समानधर्मी

     बहता रहता  है उन सबके  अंतर में

      जीवन- संघर्ष का सुमधुर संगीत.




    

   

  



तीर पर कैसे रुकूँ मैं

 क्षितिज तक लहरा रहा चिर -सजग सागर    संजोये अपनी अतल गहराइयों में    सीप, मुक्ता,हीरकों  के कोष अगणित  दौड़ती आतीं निरंतर बलवती उद्दाम लहरें...