1 . प्रार्थना
2. दृष्ट से अदृष्ट की ओर
3 . ईश्वर ने नहीं किया यह वादा...
4 . राम , तुम्हें प्रणाम
5. अवध की दीपावली
6. संत वैज्ञानिक
7. चिर - स्मरणीया माँ
8. आभार
2. दृष्ट से अदृष्ट की ओर
3 . ईश्वर ने नहीं किया यह वादा...
4 . राम , तुम्हें प्रणाम
5. अवध की दीपावली
6. संत वैज्ञानिक
7. चिर - स्मरणीया माँ
8. आभार
2. आज की चिंता
3. आतंकवाद
4. दुनिया को नहीं चाहिए...
5. हिरोशिमा की चेतावनी
6. युद्ध के बाद
1. स्वागत, नव - वर्ष
2. आशा की ध्वनियाँ
3. प्यारी बेटियाँ
4 . मेरे शब्द
5 . कविता - अकविता
6. सबसे सुन्दर कविता
7 . छोटी सी बात
8. बेटी के अधिकार
9 . अंदर की चिंगारी
10. गौरय्या की जिद्द
11. गिरगिट उवाच
12. पतझड़ के बाद
13. गुलाब की आत्म - कथा
14. कोविड काल की एक दोपहर
15. गाँव वाला घर
16. विदा होता हुआ साल
1. हे हिमालय
2. पर्वत - पुत्री
3. पहाड़ की नारी
4. निर्झरिणी
5 . नदी का रास्ता
6. फूलों की घाटी
7 . वृक्ष
8 . सागर दर्शन
9 . जाड़े के दिन
10 . दिसम्बर की धूप
11 . मकर संक्रांति
12 . वसंत की आहट
13. स्वागत, ऋतुराज!
14. ग्रीष्म का आतप
15 . बरखा रानी
16 . इंद्र धनुष
17 . सूर्यास्त की बेला
18 . आकाश गंगा
19. जागती रहती है रात
20 . हे ज्योतिपुंज!
और किया मुझे उपकृत अपने -अपने ढंग से.
श्रद्धावनत हूँ सर्वप्रथम माता - पिता के प्रति
पाया जिनसे अनमोल उपहार जीवन का.
कृतज्ञ हूँ परिवार के सब वरिष्ठ जनों की
मिला सदा जिनसे भरपूर स्नेह और सम्बल
ऋणी हूँ सदैव गुरुजनों, शिक्षकों की
मिला जिनसे आशीष और अमूल्य विद्या -धन
आभार है मित्रों, परिचितों, स्वजनों का
बढ़ाते रहे जो मनोबल निरंतर
चिर -आभार माता जैसी प्रकृति का
पालन करती जो समस्त प्राणी जगत का
परम पिता परमेश्वर को बस विनम्र नमन
क्योंकि शब्द नहीं हैं कृतज्ञता ज्ञापन में सक्षम
उस सब के लिये जो पाया जन्म लेकर
विविधता से भरी इस अद्भुत यात्रा में.
ईश्वर की सुन्दरतम रचना हो तुम
निर्दोष और चित्ताकर्षक है--
तुम्हारी भोली चितवन.
जैसे सूरज और चाँद की किरणेँ
घुल मिल कर ओस की बूंदों में
चमक रही हों फूलों की पंखुड़ियों पर
उगते सूरज की रौशनी में.
तुम्हारा जन्म, जैसे
स्वयं परमेश्वर की इच्छा से
धरती पर होने वाली
सर्वाधिक आनंदमयी घटना.
होगा उस परम रचयिता को भी गर्व
तुम्हें अस्तित्व में लाने पर,
क्योंकि उसके अप्रतिम कौशल की ,
सजीव प्रतिमा हो तुम .
समाता जा रहा है धीरे धीरे
अतीत की अतल गहराइयों में
विदा लेकर वर्तमान से.
उसके जाने से रिक्त हुई जगह
भरती जाएगी स्वतः ही
आने वाले समय की
गतिविधियों, घटनाओं से.
विश्व रंग - मंच पर घटित होने लगेंगे फिर
जीवन के विविध क्रिया कलाप
एक दूसरे का अनुसरण कर रहे
सूर्य, चंद्र की अनंत छाया में.
घूमता रहेगा अहर्निंश गति -चक्र काल देव का
धूप - छाँव, अँधेरे - उजालों को बाँटता
मिलन की उत्सवी खुशियों के साथ साथ
दुख -दर्द, विछोह की पीड़ा भी लाता.
विदा होता हर वर्ष दे जाता सन्देश
कि जीवन है फूल - काँटों से भरी डगर
चलना होगा इस पर सदा संतुलित रह कर
सरल होगा सफ़र, यह सत्य यदि गुन लो.
सुखद परिवर्तन का सन्देश वाहक
धरा पर अवतरित होता है जो
राजसी वैभव के साथ.
जिसकी पगध्वनि सुनाई देते ही
शुरू हो जाता शीत काल का पराभव
समेटने लगता वह ताम - झाम अपना
सत्ता - परिवर्तन की आहट भर पाकर
हटा देता सूरज भी कुछ निकट आकर
चारों ओर छाया कुहासे का आवरण
पोंछ देतीं उसकी असंख्य स्वर्ण किरणेँ
धरती के मुख पर जमे तुषार कण
नींद से जाग उठती प्रमुदित, प्रफुल्लित वह
करने स्वागत मनभावन अतिथि का
प्रसन्न -मन प्रकृति भी आ जुटती सखी सी
सँवारने को फिर से उसका घर आँगन.
क्षितिज तक लहरा रहा चिर -सजग सागर संजोये अपनी अतल गहराइयों में सीप, मुक्ता,हीरकों के कोष अगणित दौड़ती आतीं निरंतर बलवती उद्दाम लहरें...